Monday 31 October 2011


दो शेर /आदिल रशीद /aadil rasheed

दो शेर 
आज निपटे हैं ज़िम्मेदारी से आज से 
आज से तुम को याद करना है 
जिन्दगी की उलझनों ने मुझे इतना वक़्त नहीं दिया के मैं तुम्हे उस एहतमाम से याद कर सकूं, उस तरह याद कर सकूं जिस तरह याद किया जाना तुम्हारा हक है मुझ पर  मै  आज ज़िन्दगी की तमाम उलझनों से आज़ाद हूँ आज मैं वाकई तुम्हे उस तरह याद कर सकता हूँ  सच्चे दिल से ............................याद करने का अभिनय नहीं

पहले फरयाद उन से करनी है 
फैसला उसके बाद करना है
 पहले रिश्ता बहाल करने की  इल्तिजा ,फरयाद गुज़ारिश, बीते खुशनुमा दिनों का  हवाला,वास्ता यानि  हर मुमकिन कोशिश के किसी तरह रिश्ता बहाल रहे ,और जब कोई रास्ता न बचे तो फिर हार के बे मन से एक गम्भीर फैसला यानि तर्के ताल्लुक
आदिल रशीद  

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