Monday 31 October 2011

तुम्हारे ताज में पत्थर जड़े हैं/aadil rasheed




तुम्हारे ताज में पत्थर जड़े हैं
जो मोती हैं वो ठोकर में पड़े हैं

उडाने ख़त्म कर के लौट आओ
अभी तक बाग़ में झूले पड़े हैं


मिरी मंजिल नदी के उस तरफ है
मुक़द्दर में मगर कच्चे घड़े हैं


ज़मीं रो रो के सब से पूछती है
ये बादल किस लिए रूठे पड़े हैं


किसी ने यूँ ही वादा कर लिया था
झुकाए सर अभी तक हम खड़े हैं


महल ख्वाबों का टूटा है कोई क्या
यहाँ कुछ कांच के टुकड़े पड़े हैं


उसे तो याद हैं सब अपने वादे
हम ही हैं जो उसे भूले पड़े हैं


ये साँसे ,नींद ,और ज़ालिम ज़माना
बिछड़ के तुम से किस किस से लड़े हैं


मैं पागल हूँ जो उनको टोकता हूँ
मिरे अहबाब  तो चिकने घड़े हैं  


तुम अपना हाल किस से कह रहे हो
तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़े हैं


अहबाब= यार- दोस्त


आदिल रशीद

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