Monday 31 October 2011

मुफ्त मे पूरी दुनिया मे बात करने का सरल माध्यम /आदिल रशीद/aadil rasheed/23/10/2010



आज रात  को करीब १० बजे मोबाईल की घंटी बजी
उधर से एक  आवाज आई  जनाब आदिल रशीद जी बोल रहे हैं ?
मैं ने कहा जी जनाब लगभग आदिल रशीद ही बोल रहा हूँ आप कौन उधर एक अनजान
आवाज थी इसलिए मैं समझा किसी टेली मार्केटिंग का फोन होगा मगर रात के १०बजे? दिल मे सवाल उठा
क्यूँ के दिन भर तो  टेली मार्केटिंग की सुरीली नाज़ुक  फोनी आतंक से दिल
डरा रहता है इसलिए मजाक मे लगभग आदिल रशीद कह दिया और फिर अब हमारी उम्र भी
नहीं रही के किसी से उलझा जाए जल्दी से किसी दोस्त को अपना पी.ए.बता कर और उसका मोबाइल नम्बर देकर जान छुटाने  का आइडिया भी कई दिलफेंक करीबी दोस्तों ने ही दिया है  साथ मे विनती भी के आदिल भाई नम्बर देना तो सिर्फ मेरा ही देना क्यूँ के हमारे पास ऐसी अनजान सुरीली नाज़ुक संगे मरमरी आवाजों के लिए वक़्त ही वक़्त है............
उधर से फिर आवाज़ आई आदिल रशीद जी से बात करनी है आवाज़ मर्दानी थी वक़्त रात के १० बजे का था इसलिए इसलिए  दूसरी बार मे मैं ने कहा जी मैं आदिल रशीद ही बोल रहा हूँ फरमाइए,
उधर से आवाज़ आई मैं बिजनोर से डाक्टर अजय बोल रहाहूँ
बिजनोर का ज़िक्र आया तो जेहन कालागढ़ की तरफ भी गया मैं ने सोचा के कहीं कोई भुला भटका बचपन का हमसफ़र तो नहीं जो आगे मिलने का वादा  कर गया था कभी.
मगर अफ़सोस ये गुमान चार सेकेण्ड भी न रहा उधर से  जुमला पूरा हुआ
आपका ब्लॉग देखा पसंद आया ग़ज़लें भी पसंद आई आपका लेख आज विजय दशमी यानी ईद का दिन है/आदिल रशीद/aadil रशीद बेहद पसंद आया आपकी बेव साईट http://www.lafzduniya.com/ को भी देखा एक बेहद जानकारी देने वाली साईट है मैं ने शुक्रिया कहा बात चल पड़ी उन्हों ने मेरे ऊपर एक दोहा  भी कह दिया हाथों हाथ
ख़त को पढके आपके,जाना कितनीं ईद
बदली मेरी ज़िदंगी, लिक्खा खूब 'रशीद'
जो उनके पुख्ता शायर होने का सबूत दे रहा था
बात एक बार फिर  चल निकली ग़ज़ल के दोषों पर तो और ख़ुशी हुई के सिर्फ उर्दू मे ही नहीं हिंदी मे भी अभी लोग ग़ज़ल पर बात करने वाले है जो ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने देना चाहते हैं तमाशा  नहीं बनाना चाहते ,अभी  कुछ लोग हैं जो उन कैदों को मान रहे है जिसकी वजह से ग़ज़ल आज भी सभी के दिलों पर राज कर रही है और ग़ज़ल का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है खूब बातें हुई लगभग दो घंटा मेरे दिल मे ख्याल आया के ये कैसे डाक्टर है जो पॉइंट टू पॉइंट बात नहीं कर रहे हैं इनके पास इस युग मे भी वक़्त ही वक़्त है और  मैं भी आज के इस मोबाईल युग  में वही शिष्टाचार के  रुढी वादी सिधान्त लिए बैठा था जो पापा ने एक बार बताये थे के बात शुरू करने वाला ही बात समाप्त करता है इसी शिष्टाचार को जेहन मे रख कर ग्राहम बेल ने लेंड लाइन फोन मे इसे बरक़रार रखा था वो ही शिष्टाचारी विशेषता अभी  कुछ समय पहले तक(मोबाइल की खोज तक ) पाई भी जाती थी  के फ़ोन करने वाला ही फोन  काट  सकता था सुनने वाला नहीं
आज कल तो शायद इस शिष्टाचार के मतलब बेवखुफ़ी हैं ,लोग उसे फ़ालतू का समझ लेते हैं ये अलग बात है वो  आदमी खुलूस का सुबूत दे रहा होता है या शिष्टाचारवश  फोन नहीं काट रहा होता है. बहुत से  लोग पॉइंट टू पॉइंट  बात करने की वकालत करते हैं मेरी निगाह मे पॉइंट टू पॉइंट सिर्फ कारोबार हो सकता है दोस्ती नहीं, साहित्यिक वार्तालाप नहीं , अदबी गुफ्तुगू नहीं, जो लोग सिर्फ कारोबारी जेहन रखते हैं वो पॉइंट टू  पॉइंट बात करते है या जो लोग कुछ नहीं जानते वो पॉइंट टू पॉइंट बात करते है क्यूंकि यहाँ एक देहाती मुहावरा कितना बड़ा तर्क देता है जो जानता है वो ही तानता है  यानि जो जानता है वो ही बोलता है
जो अदबी जेहन रखते हैं उनकी फितरत के बारे मे एक शेर अर्ज़ है
हम इश्क के मारो की फितरत ही निराली है
बैठे हैं तो बैठे हैं ,चलते हैं तो चलते हैं
खैर बात चल निकली तो खूब दूर तक भी गई ,लगभग दो घंटो तक चला ये पहली मुलाक़ात पर गुफ्तुगू का सिलसिला 
दिल ने डाक्टर साहेब की मुहब्बत उनके ख़ुलूस  को नमन किया आखिर लगभग १२०/- रूपए खर्च करना महज़ अदबी गुफ्तुगू पर किसी शख्स  की मुहब्बत की निशानी नहीं तो और क्या है वर्ना मैं तो बहुत से ऐसे लोगों को
जानता हूँ जो अपना समय खर्च नहीं करते पैसा चाहे कितना खर्च करा लो मैं अभी उनके इस अदबी खर्च (फ़िज़ूल खर्च ) पर ग़ौर कर ही रहा था के तभी ख्याल आया के दुनिया मे बातूनी लोगो के लिए  मुफ्त मे बात करने के लिए एक सरल माध्यम है जिसका नाम है http://www.skype.com/intl/en/होम  इस link से आप स्काइप  डाऊनलोड कर सकते हैं और पूरे विश्व मे कहीं भी  फ्री मे बात कर सकते हैं और खूब ढेर सारी बातें कर सकते हैं खूब ज्ञान की गंगा बहा सकते हैं  क्यूँ के  जब जानोगे तो ही तो तानोगे यानी बोलोगे भाई  ................आदिल रशीद /aadil rasheed/ 23-10-2010
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