Monday 31 October 2011

नज़्म मासूम सवाल सवाल aadil rasheed

  हम जो भी बात चीत  घर में करते  हैं हमारे बच्चे  उनको सुनते हैं और कभी कभी ऐसे ऐसे सवाल कर देते हैं जिनका  जवाब हम  नहीं दे पाते या जिनका हम जवाब जानते हुए भी देना नहीं चाहते मेरी ये नज़्म मेरी सब से छोटी बेटी अरनी सहर के अचानक किये गए ऐसे ही एक मासूम सवाल के बाद मेरे दिल मे उठे भावुकता के पलों की है     .....आदिल रशीद
मुहमल  - जिसको तर्क कर दिया जाए जिसका प्रयोग न किया जाये,बेकार फ़िज़ूल,बे मआनी,जिसका कोई अर्थ न हो,
मुतमईन - संतुष्ट,
खालिक- मालिक .प्रभु, ईश्वर
लुगत - शब्द कोष डिक्शनरी   

नज़्म मासूम सवाल सवाल
वो मेरी मासूम प्यारी बेटी
है उम्र जिसकी के छ बरस की
ये पूछ बैठी बताओ पापा
जो आप अम्मी से कह रहे थे
जो गुफ्तुगू आप कर रहे थे
के ज़िन्दगी में बहुत से ग़म हैं
बताओ कहते है "ग़म" किसे हम?
कहाँ  मिलेंगे हमें भी ला दो?
सवाल पर सकपका गया मैं
जवाब सोचा तो काँप उठ्ठा
कहा ये मैं ने के प्यारी बेटी
ये लफ्ज़ मुहमल है तुम न पढना
तुम्हे तो बस है ख़ुशी ही पढना
ये लफ्ज़ बच्चे नहीं हैं पढ़ते
ये लफ्ज़ पापा के वास्ते है




          
वो मुतमईन हो के सो गई जब
दुआ की मैं ने ए मेरे मौला
ए मेरे मालिक  ए मेरे खालिक
तू ऐसे लफ़्ज़ों को मौत दे दे
मआनी जिसके के रंजो गम हैं
न पढ़ सके ताके कोई बच्चा 
न जान पाए वो उनके मतलब
नहीं तो फिर इख्तियार दे दे
के इस जहाँ की सभी किताबों
हर इक लुगत  से मैं नोच डालूं
खुरच दूँ उनको मिटा दूँ उनको
जहाँ -जहाँ पर भी  ग़म लिखा है 
जहाँ -जहाँ पर भी  ग़म लिखा है 


आदिल रशीद 
Aadil Rasheed

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