Monday 31 October 2011

उसे तो कोई अकरब काटता है/

               ग़ज़ल
उसे तो कोई अकरब काटता है

कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है

जुदा जो गोश्त को नाखुन से कर  दे
वो मसलक हो के मशरब काटता है

बहकने का नहीं इमकान कोई
अकीदा सारे करतब काटता है

कही जाती नहीं हैं जो जुबां से
उन्ही बातों का मतलब काटता है

वो काटेगा नहीं है खौफ इसका
सितम ये है के बेढब काटता है

तू होता साथ तो कुछ बात होती
अकेला हूँ तो मनसब काटता है

जहाँ तरजीह देते हैं वफ़ा को
जमाने को वो मकतब काटता है

उसे तुम खून भी अपना पिला दो
मिले मौका तो अकरब काटता है

ये माना सांप है ज़हरीला बेहद
मगर वो जब दबे तब काटता है

अलिफ़,बे.ते.सिखाई जिस को आदिल
मेरी बातों को वो अब काटता है

अकरब=निकटतम व्यक्ति, 
गोश्त= मांस,
मसलक-मशरब=धर्म मज़हब
इमकान= उम्मीद,
अकीदा= यकीन विश्वास 
करतब =जादू टोना
मनसब= ओहदा पद ,
तरजीह=प्राथमिकता,
मकतब=स्कूल

आदिल रशीद
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