ग़ज़ल
पहले सच्चे का वहिष्कार किया जाता है
फिर उसे हार के स्वीकार किया जाता है
ज़हर में डूबे हुए हो तो इधर मत आना
ये वो बस्ती है जहाँ प्यार किया जाता है
क्या ज़माना है के झूटों का तो सम्मान करे
और सच्चों का तिरस्कार किया जाता है
तू फ़रिश्ता है जो एहसान तुझे याद रहे
वर्ना इस बात से इनकार किया जाता है
जिस किसी शख्स के ह्रदय में कपट होता है
दूर से उसको नमस्कार किया जाता है
आदिल रशीद
नई दिल्ली
भारत
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