ग़ज़ल
आज का बीते कल से क्या रिश्ता
झोपडी का महल से क्या रिश्ता
हाथ कटवा लिए महाजन से
अब किसानो का हल से क्या रिश्ता
सब ये कहते हैं भूल जाओ उसे
मशवरों का अमल से क्या रिश्ता
किस की खातिर गंवा दिया किसको
अब मिरा गंगा जल से क्या रिश्ता
जिस में सदियों की शादमानी हो
अब किसी ऐसे पल से क्या रिश्ता
जो गुज़रती है बस वो कहता हूँ
वरना मेरा ग़ज़ल से क्या रिश्ता
जिंदा रहता है सिर्फ पानी में
रेत का है कँवल से क्या रिश्ता
मैं पुजारी हूँ अम्न का आदिल
मेरा जंग ओ जदल से क्या रिश्ता
जंग ओ जदल =लड़ाई झगडा
आदिल रशीद
No comments:
Post a Comment