Monday, 31 October 2011

आज का बीते कल से क्या रिश्ता/ aadil rasheed


               ग़ज़ल


आज का बीते कल से क्या रिश्ता
झोपडी का महल से क्या रिश्ता


हाथ कटवा लिए महाजन से
अब किसानो का हल से क्या रिश्ता


सब ये कहते हैं भूल जाओ उसे
मशवरों का अमल से क्या रिश्ता


किस की खातिर गंवा दिया किसको
अब मिरा गंगा जल से क्या रिश्ता


जिस में सदियों की शादमानी हो
अब किसी ऐसे पल से क्या रिश्ता


जो गुज़रती है बस वो कहता हूँ
वरना मेरा ग़ज़ल से क्या रिश्ता


जिंदा रहता है सिर्फ पानी में
 रेत का है कँवल से क्या रिश्ता


मैं पुजारी हूँ अम्न का आदिल
मेरा जंग ओ जदल से क्या रिश्ता 

जंग ओ जदल =लड़ाई झगडा


आदिल रशीद

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