जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है /आदिल रशीद /aadil rasheed
जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है
तो हर ज़बान से बस अल्लाह हू निकलता है
ये चाँद रात ही दीदार का वसीला है
बरोजे ईद ही वो खूबरू निकलता है
हलाल रिज्क का मतलब किसान से पूछो
पसीना बन के बदन से लहू निकलता है
ज़मीन और मुक़द्दर की एक है फितरत
के जो भी बोया वही हूबहू निकलता है
तेरे बग़ैर गुलिस्ताँ को क्या हुआ आदिल
जो गुल निकलता है बे रंगों बू निकलता है
आदिल रशीद
माहरू= सुन्दर चाँद जैसे चेहरे वाला
अल्लाह हू = हे भगवान्
आदिल रशीद
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