Tuesday 30 April 2019

1मई अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस (योमे मज़दूर) पर विशेष 1 May 2019 labour day Aadil Rasheed


*1 मई अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस (योमे मज़दूर)  पर विशेष*
खोखले नारों से दुनिया को बचाया जाए
आज के दिन ही हलफ़ इस का उठाया जाए
जब के मज़दूर को हक़ उसका दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
ख़ुदकुशी के लिए कोई  तो सबब होता है
कोई मर जाता है एहसास ये तब होता है
पेट और भूख का रिश्ता भी अजब होता है
जब किसी भूखे को भर पेट खिलाया  जाए 
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
अस्ल  ले लेते हैं और ब्याज भी ले लेते हैं
कल भी ले लेते थे और आज भी ले लेते हैं
दो निवालों के लिए लाज भी ले लेते  हैं
जब कि  हैवानों को इंसान बनाया जाए 
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
बेगुनाहों की सज़ाएँ न  खरीदी जाएँ
चंद सिक्कों में  दुआएँ न खरीदी जाएँ
​दूध के बदले में   माएँ न  खरीदी जाएँ​
मोल ममता का यहाँ  न लगाया जाए 
​योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए ​
अद्ल ओ आदिल कोई मज़दूरों की खातिर आए
उनके हक़ के  लिए कोई  तो मुनाज़िर आए
अख्तर ओ कैफ़ी ओ सरदार सा शायर आए
पल दो पल के लिए फिर से कोई साहिर आए
फ़र्ज़  जब याद अदीबों को दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए​
*आदिल रशीद*
*نظم*
           یومٍ مزدور
کھوکھلے نعروں سے دنیا کو بچایا جائے
آج کے دِن ہی حلف اِس کا اٹھایا جائے
جب کہ مزدور کو حق اُس کا دلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

خود کشی کے لئے کوئ تو سبب ہوتا ہے
کوئ مر جاتا ہے احساس یہ تب ہوتا ہے
پیٹ اور بھوک کا رشتہ بھی عجب ہوتا ہے
جب کسی بھوکے کو بھر پیٹ کھلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

اصل لے لیتے ہیں اور بیاج بھی لے لیتے ہیں
کل بھی لے لیتے تھے اور آج بھی لے لیتے ہیں
دو نوالوں کے لئے لاج بھی لے لیتے ہیں
جب کہ حیوانوں کو انسان بنایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

بے گناہوں کی سزائیں نہ خریدی جائیں
چند سکوں میں دعائیں نہ خریدی جائیں
دودھ کے بدلے میں مائیں نہ خریدی جائیں
مول ممتا کا یہاں جب نہ لگایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

عدل و عادل کوئ مزدوروں کی خاطر آئے
ان کے حق کے لئے کوئ تو مُناظر آئے
اختر و کیفی و سردار سا شاعر آئے
پل دو پل کے لئے پھر سے کوئ ساحر آئے
فرض  جب یاد ادیبوں کو دلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے
عادل رشید
Aadil Rasheed
Email: aadilrasheedpoet@gmail.com
*1 मई अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस (योमे मज़दूर)  पर विशेष*
खोखले नारों से दुनिया को बचाया जाए
आज के दिन ही हलफ़ इस का उठाया जाए
जब के मज़दूर को हक़ उसका दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
ख़ुदकुशी के लिए कोई  तो सबब होता है
कोई मर जाता है एहसास ये तब होता है
पेट और भूख का रिश्ता भी अजब होता है
जब किसी भूखे को भर पेट खिलाया  जाए 
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
अस्ल  ले लेते हैं और ब्याज भी ले लेते हैं
कल भी ले लेते थे और आज भी ले लेते हैं
दो निवालों के लिए लाज भी ले लेते  हैं
जब कि  हैवानों को इंसान बनाया जाए 
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए 
बेगुनाहों की सज़ाएँ न  खरीदी जाएँ
चंद सिक्कों में  दुआएँ न खरीदी जाएँ
​दूध के बदले में   माएँ न  खरीदी जाएँ​
मोल ममता का यहाँ  न लगाया जाए 
​योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए ​
अद्ल ओ आदिल कोई मज़दूरों की खातिर आए
उनके हक़ के  लिए कोई  तो मुनाज़िर आए
अख्तर ओ कैफ़ी ओ सरदार सा शायर आए
पल दो पल के लिए फिर से कोई साहिर आए
फ़र्ज़  जब याद अदीबों को दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए​
*आदिल रशीद*
*نظم*
           یومٍ مزدور
کھوکھلے نعروں سے دنیا کو بچایا جائے
آج کے دِن ہی حلف اِس کا اٹھایا جائے
جب کہ مزدور کو حق اُس کا دلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

خود کشی کے لئے کوئ تو سبب ہوتا ہے
کوئ مر جاتا ہے احساس یہ تب ہوتا ہے
پیٹ اور بھوک کا رشتہ بھی عجب ہوتا ہے
جب کسی بھوکے کو بھر پیٹ کھلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

اصل لے لیتے ہیں اور بیاج بھی لے لیتے ہیں
کل بھی لے لیتے تھے اور آج بھی لے لیتے ہیں
دو نوالوں کے لئے لاج بھی لے لیتے ہیں
جب کہ حیوانوں کو انسان بنایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

بے گناہوں کی سزائیں نہ خریدی جائیں
چند سکوں میں دعائیں نہ خریدی جائیں
دودھ کے بدلے میں مائیں نہ خریدی جائیں
مول ممتا کا یہاں جب نہ لگایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

عدل و عادل کوئ مزدوروں کی خاطر آئے
ان کے حق کے لئے کوئ تو مُناظر آئے
اختر و کیفی و سردار سا شاعر آئے
پل دو پل کے لئے پھر سے کوئ ساحر آئے
فرض  جب یاد ادیبوں کو دلایا جائے
یومٍ مزدور اُسی روز منایا جائے

عادل رشید
Aadil Rasheed
Email: aadilrasheedpoet@gmail.com



*1 मई अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस (योमे मज़दूर)  पर विशेष*

खोखले नारों से दुनिया को बचाया जाए
आज के दिन ही हलफ़ इस का उठाया जाए
जब के मज़दूर को हक़ उसका दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए

ख़ुदकुशी के लिए कोई  तो सबब होता है
कोई मर जाता है एहसास ये तब होता है
पेट और भूख का रिश्ता भी अजब होता है
जब किसी भूखे को भर पेट खिलाया  जाए

योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए

अस्ल  ले लेते हैं और ब्याज भी ले लेते हैं
कल भी ले लेते थे और आज भी ले लेते हैं
दो निवालों के लिए लाज भी ले लेते  हैं
जब कि  हैवानों को इंसान बनाया जाए

योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए

बेगुनाहों की सज़ाएँ न  खरीदी जाएँ
चंद सिक्कों में  दुआएँ न खरीदी जाएँ
​दूध के बदले में   माएँ न  खरीदी जाएँ​
मोल ममता का यहाँ  न लगाया जाए

​योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए ​

अद्ल ओ आदिल कोई मज़दूरों की खातिर आए
उनके हक़ के  लिए कोई  तो मुनाज़िर आए
अख्तर ओ कैफ़ी ओ सरदार सा शायर आए
पल दो पल के लिए फिर से कोई साहिर आए
फ़र्ज़  जब याद अदीबों को दिलाया जाए
योमे मज़दूर उसी रोज़ मनाया जाए​

*आदिल रशीद*

*Aadil Rasheed*
Email: aadilrasheedpoet@gmail.com

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